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"रोटी, कपड़ा, मकान", भारत की मूलभूत जरूरतों में जुड़ना चाहिए शिक्षा

  • Writer: EdJustice
    EdJustice
  • Dec 31, 2021
  • 2 min read

Updated: Jan 1, 2022


हमारे देश भारत के प्रिय राष्ट्रपति स्वर्गीय ' डा. ए.पी.जे अब्दुल कलाम' ने देशवासियों को एक सपना दिखाया था। उनकी दूरदर्शिता थी कि भारत में इतनी काबिलियत है कि वह वर्ष 2020 तक एक विकसित देश बन सकता है। वह स्वयं एक वैज्ञानिक थे और मुश्किल सवालों का हल ढूंढना तो उनकी आम ज़िंदगी का हिस्सा था। वह बच्चों में अत्यधिक लोकप्रिय थे और अक्सर विद्यालयों में बच्चों को प्रोत्साहित किया करते थे। आप चाहें तो सोशल मीडिया पर उनके जादुई वीडियो देख सकते हैं। आज वो हमारे बीच नहीं हैं परन्तु उनका वह सपना आज भी जीवित है।






इसके लिए कुछ सवाल भी ज़िंदा हो जाते हैं जैसे कि - आखिर हम कौन से वर्ष में सचमुच में अपने आपको पूर्ण रूप से विकसित कह सकेंगे ? हमारी तैयारी कैसी है ? अगर इनका जवाब आपके पास हो तो हमें जरूर बताएं।


एक समय था जब हमारी प्रधानमंत्री स्वर्गीय' इंदिरा गांधी' ने हमारे देश में "रोटी, कपड़ा और मकान" का नारा लगाया था। कुछ इस तरह हमारी मूलभूत सुविधाओं में इन तीन जरूरतों को जोड़ा गया था। मूलभूत यानि कि कम-से-कम संसाधनों के साथ एक सभ्य जीवन का अधिकार। आज़ाद भारत के सामने की चुनौतियां अलग थी। हमने सबसे बड़ी त्रासदी जो देखी थी। यह बात सही भी लगती है कि हमारे देशवासियों को सबसे ज़्यादा ज़रूरी उस वक़्त इन तीनों की रही थी।


आज का भारत अलग है। विश्व में सबसे ज़्यादा युवा देश में से एक। सबसे ज़्यादा सपने देखने वाली आंखें आपको यहीं मिलेंगी। "रोटी, कपड़ा, मकान" के साथ-साथ हमें चाहिए "शिक्षा"!


आज की पीढ़ी के भीतर अगर कुछ कर गुजरने का जज़्बा जगाना है, दुनिया को उनकी मुट्ठी में लाना है तो उन्हें उत्तम शिक्षा की जरूरत है। आज के हमारे बच्चे, कल का हमारा भविष्य हैं। हमारा आज तभी गोरवान्वित होगा जब हम आज को संवारेंगे, हमारा भविष्य अपने आप में हमारी नई कहानी लिखेगा।


कहते हैं कि पत्थर से भी पानी निकल सकता है तो हमारा देश तो बिल्कुल विकसित हो सकता है। हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं जब हमारे पास मूलभूत सुविधाएं हों जिनमें शिक्षा भी शामिल हो। जब हम शिक्षित होते हैं तो हमारे सोचने समझने का मायना अलग हो जाता है और ज़िन्दगी को देखने का नज़रिया भी बदल जाता है। हम विकास करना चाहते हैं। हम आर्थिक रूप से भी मजबूत बनते हैं। विश्व के तमाम विकसित देशों की शिक्षा दर बहुत अच्छी है और वे पूरी दुनिया के लिए अवसर भी प्रदान कर रहें हैं। हम सही मायने में आत्मनिर्भर और विकसित देश तभी बनेंगे जब हम एक कदम नहीं बल्कि चार कदम आगे की सोचें।


हमारी उम्मीद है कि आज नहीं तो कल हमारी मूलभूत सुविधाओं " रोटी, कपड़ा, मकान " में "शिक्षा" का जुड़ाव हो जाए। हमें बहुत खुशी होगी जब आने वाला भारत गर्व से कहेगा कि शिक्षा एक "लक्जरी" नहीं है यह तो हमारी मूलभूत सुविधाएं हैं। और तब हमारा नया नारा होगा - " रोटी, कपड़ा, मकान और शिक्षा "।


-प्रीति भारती, एडजस्टिस वोलेंटियर

(लेखिका एवं कवयित्री फेम ' स्वप्निल हक़ीक़त ')

कटिहार, बिहार



 
 
 

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2 comentários


rachna saran
rachna saran
18 de jan. de 2022

ऐसी प्रगतिवादी सोच आधुनिक समय की आवश्यकता है ।

सार्थक आलेख के लिये साधुवाद


Curtir

Vikram Wadkar
Vikram Wadkar
02 de jan. de 2022

वाह.. प्रीती जी!! यही नई सोच एक नये भारत की बुनियाद बनेगा| और आपने यह बहुत सटीक तरह से व्यक्त किया है| हम सबकी ओर से आपको बहुत शुभकामना| ऐसे ही आपके और हर किसी के दिल की आवाज शब्दो मे बयां करते रहीए|

Curtir
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